Rural Women Entrepreneurs का contribution यानी योगदान भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) में कल भी था और आज भी है. पहले वे खेती में अपना योगदान देती थी और आज हर क्षेत्र (सुई बनाने से लेकर टेक्नोलॉजी बनाने तक) में अपना योगदान देती हैं. इन दिनों rural women entrepreneurs हर क्षेत्र में प्रशंसा प्राप्त कर रही हैं ।
भारत की इन महिलाओं ने, न केवल अपना कारोबार स्थापित (establish) किया है, बल्कि यह गांव की अन्य महिलाओं को भी आत्म-निर्भर (Self-dependent) बना रही है.
शायद, आपको जानकर हैरानी होगी की, लगभग 6 करोड़ entrepreneurs में से लगभग 80 लाख entrepreneurs औरतें यानी महिलायें हैं.
Entrepreneurship, भारत देश के गावों और शहरों में रोजगार बढ़ाने का यह सबसे अच्छा तरीका है. मैकिन्से ग्लोबल इंस्टीट्यूट द्वारा की गयी study से यह साबित हुआ है कि यदि औरतों को, पुरुषों की ही तरह काम करने अवसर दिया जाए तो, 2025 तक, भारत की जीडीपी (GDP) 18% तक बढ़ सकती है.
अब समय बदल रहा है, शहर की महिलाओं के साथ-साथ अब गावों की महिलायें भी पुरुषों के साथ कन्धा से कन्धा मिलाकर चल रही हैं.
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भले ही, आज Technology आ गयी हो, लेकिन, इन गावों की महिलाओं को आज भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. ये चुनौतियाँ, केवल घर के स्तर पर ही नहीं होती हैं, बल्कि सामाजिक स्तर पर भी होती हैं.
बहुत लम्बे समय से, Entrepreneurs शब्द, शायद, पुरुषों के लिए आरक्षित रहा है. जबकि इन Women Entrepreneurs की सफलता की कहानियां पुरानी हैं, उनकी कठिनाइयों और संघर्षों को शायद ही कभी discuss किया जाता है।
आज सिर्फ शहर की महिलायें ही नहीं, बल्कि गावों की महिलायें भी अपना भविष्य बनाने के लिये उत्सुक है. आज वे, हर बाधा को, हर चुनौती को पार करके (चाहे वह प्रेरणा की कमी हो, शिक्षा की कमी हो या सामाजिक सीमायें) मंजिल पर पहुंचने को तैयार हैं.
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आज यहाँ इस Post में हम आपको ऐसी women entrepreneurs (Success Stories of Rural Female Entrepreneurs in India in Hindi) की के बारे में बताएँगे, जिन्होंने हर बाधा को पार किया और अपनी मंजिल पायी।
Table of Contents
List of Rural Women Entrepreneurs in India
यहां हम कुछ ऐसी महिलाओं के बारे में बात करेंगे, जो अपनी मानसिकता बदल रही हैं, रूढ़ियों को तोड़ रही हैं, अपने साथ-साथ, अन्य औरतों को भी मज़बूत और Independent यानी आत्म-निर्भर बना रही हैं।
1. रूमा देवी
Rural Developement and Awareness Organization की अध्यक्ष रूमा देवी ने राजस्थान के 75 गांवों में 22,000 महिलाओं को कढ़ाई, पैचवर्क और मिरर वर्क की ट्रेनिंग देकर उन्हें आर्थिक रूप से आत्म-निर्भर (Economically-Independent) बनाया है.
उनका NGO, श्रम जागरूकता प्रोग्राम यानी Labour awareness Program आयोजित करता है. जहां वे निष्पक्ष बिज़नेस, मजदूरी और वीमेन के अधिकारों के साथ-साथ बाल विवाह (Child marriage), घरेलु हिंसा (domestic violation), छेड़-छाड़ (molestation), लड़कियों की शिक्षा (Girl’s Education) के बारे में चर्चा करते हैं. रुमा देवी को “नारी शक्ति पुरस्कार 2018” से भी सम्मानित किया जा चुका है.
2. पाबीबेन रबारीक
पाबीबेन गुजरात के रबारी सोसाइटी से जुड़े एक कारोबार चलाती हैं, जो महिला-मजदूर (Women Labours) को सशक्त बनाती है.
Pabiben.com पर, Pack, दरी, files, रजाई, कुशन कवरिंग, और बहुत कुछ मिलता है, जो की, कंपनी की सभी महिलाओं द्वारा तैयार किया जाता है.
पाबीबेन भद्रोई गाँव की रहने वाली हैं, और इन्होने अपनी विधवा माँ का साथ देने के लिए एक छोटी उम्र में ही काम करना शुरू किया। आर्थिक तंगी के कारण, वह अपनी प्राइमरी एजुकेशन पूरी नहीं कर सकी, इसलिए वह अपनी माँ से पारंपरिक कढ़ाई सीखने के लिए घर पर ही रहती थीं |
अपने कारोबार के द्वारा, उन्होंने अपने गांव में 60 से अधिक औरतों के लिए रोजगार के मौक़े पैदा किए हैं, जिससे वे मजबूत, शिक्षित और इंडिपेंडेंट हो गई हैं।
छोटे शहरों में entrepreneurship में, उनके लगातार दिए जाने वाले योगदान के लिए, पाबीबेन को 2016 में आईएमसी लेडीज विंग 24 वें जानकीदेवी बजाज पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
पाबीबेन रबारी ने अपनी कला का पहला वीमेन एन्त्रेप्रेंयूर्स का आविष्कार किया, जिसे ‘हरि जरी’ नामक कढ़ाई कला के तौर में अपनी अनूठी खोज के साथ pabiben.com कहा जाता है।
उनका नज़रिया अपने गांव की आदिवासी महिलाओं के लिए एक शक्तिशाली, सेल्फ इंडिपेंडेंट बिज़नेस विकसित करना था. 2020 तक, वह अपने समुदाय के 120 परिवारों को रोजगार देने के लिए जिम्मेदार रही है।
Pabiben.com डिजाइनों को पूरी दुनिया भर में मान्यता मिली है, जिसमें अमेरिका स्थित स्मिथसोनियन इंस्टीट्यूशन, बॉलीवुड और हॉलीवुड भी शामिल हैं।
3.कल्पना सरोजी
कल्पना सरोजी ने ऐसे लोगों को आगाह किया और बताया की कैसे वो लोग उपलब्ध विभिन्न सरकारी ऋणों और योजनाओं के बारे में जानकारी ले सकते हैं.
इसके लिए उन्होंने एक NGO की स्थापना की। कुछ वर्षों के संघर्ष के तुरंत बाद, उन्होंने एक रियल एस्टेट बिज़नेस शुरू किया , अपनी फिल्म प्रोडक्शन कंपनी खोली, और फिर कंपनी की संकटग्रस्त संपत्तियों को खरीदने और उन्हें प्रॉफिट में बदलने के बाद कमानी ट्यूब्स के अध्यक्ष के तौर में बोर्ड पर रहीं।
4. गुणवती चंद्रशेखरन
शिवकाशी की रहने वाली तमिलनाडु की 41 वर्षीय गुणवती चंद्रशेखरन ने जीवन में जल्दी क्विलिंग के अपने जुनून की शुरआत की और अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए उत्साह के साथ काम किया।
गुणवती दो साल की उम्र में पोलियो के हमले से लड़ी और बच गईं। 16 साल की उम्र में ही उनकी शादी हो गई थी।
गुणावती ने खुद से ही सीखा कि कागज के स्क्रैप को कला के सुंदर टुकड़ों में कैसे बदलना है, आर्थिक रूप से मजबूत होने (Financial Stable) और सफलता पाने के लिए, उनका संकल्प अटल रहा.
आज, चंद्रशेखरन एक क्विलिंग ब्रांड की मालिक हैं, जिसे गुना की क्विलिंग कहा जाता है। वह गुना की क्विलिंग ब्रांड नाम के अंडर वॉल आर्ट, ग्रीटिंग कार्ड्स, लघु मूर्तियों, आभूषणों और बहुत कुछ जैसे क्विल्ड आर्टवर्क बेचती है।
उन्होने अपनी कार्यशाला में 2,000 से अधिक कारीगरों को पढ़ाया है, जिसमें अनाथालयों की महिलाएं, गृहिणियां, छात्र और बच्चे शामिल हैं। क्विलिंग विशेषज्ञ के रूप में, उन्हें थिरुनगर के लायंस क्लब द्वारा वुमन ऑफ एक्सीलेंस अवार्ड और तमिलनाडु सरकार द्वारा डिस्ट्रिक्ट अवार्ड और ब्रिटिश काउंसिल द्वारा सम्मानित किया गया है।
5. गोदावरी सतपुते
गोदावरी सतपुते 38 वर्षीय गोदावरी सतपुते, जो महाराष्ट्र के नारी गांव की निवासी हैं, अपना खुद का पेपर लैंप प्रोडक्शन बिज़नेस- गोदावरी आकाशकंदिल – चलाती हैं, जिसकी शुरुआत उन्होंने 2009 में की थी। इसे शुरू करने से पहले, गोदावरी को गंभीर और तरह तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा क्योंकि जिस कंपनी में वह काम करती थी, उसके घाटे में चलने के बाद उनके पति की नौकरी चली गई।
गोदावरी, हालांकि अपने पति की मदद करने में सक्षम नहीं थी, उनके पास नौकरी खोजने के लिए प्रॉपर एजुकेशन नहीं थी, जिससे उनके बच्चों और पूरे परिवार के लिए पर्याप्त आमदनी हो।
गोदावरी के जीवन में टर्निंग पॉइंट तब आया, जब उसने एक स्थानीय बाजार में एक कागज़ का दीपक देखा, जिसे उसने यह आईडिया मिला की वह भी इसे आसानी से बना सकती है। अपने पति के मोरल सपोर्ट से गोदावरी ने बैंकों से कर्ज मांगा, लेकिन बैंक ने उन्हें मना कर दिया।
उनके रिश्तेदारों ने तब उन्हें एक छोटा सा ब्याज मुक्त क़र्ज़ दिया, और गोदावरी अपने बिज़नेस की नींव रखने में कामयाब रहीं।
उन्होंने अंततः अपनी कंपनी को आगे ले जाने के लिए वित्तीय सहायता और एन्त्रेप्रेंयूर्शिप डायरेक्शन के लिए BYST (भारतीय युवा शक्ति ट्रस्ट) से कनैक्ट किया।
आज, गोदावरी कई अन्य वीमेन को एम्प्लॉयमेंट देती है और उन्हें आर्थिक रूप से इंडिपेंडेंट बनने में मज़बूत बनाती है।
2013 में, उनकी कंपनी ने 30 लाख रुपये से अधिक का प्रॉफिट कमाया साथ ही उन्होंने इसी वर्ष YBI वुमन इंटरप्रेन्योर का लेबल हासिल किया। गोदावरी ने यूथ बिजनेस इंटरनेशनल अवार्ड्स 2013 में वुमन एंटरप्रेन्योर ऑफ द ईयर के पुरस्कार से सम्मानित भी हुई।
6. अनीता देवी
अनीता देवी, जो अब ‘बिहार की मशरूम महिला’ के रूप में जानी जाती हैं, ने अपने परिवार को पालने के लिए 2010 में मशरूम उगाना शुरू किया। आज वह ‘माधोपुर फार्मर्स प्रोड्यूसर्स कंपनी’ को खुद चलाती हैं।
अपने शुरुआती दिनों में उन्हें ग्रामीणों के मज़ाक का सामना करना पड़ा, उन्होंने बाद मे कई अन्य ग्रामीण महिलाओं को मशरूम की खेती के माध्यम से अपनी इनकम कमाने में मदद की है।
वह बिहार राज्य में महिलाओं की मदद के लिए कई NGOs और SHG के साथ काम करती हैं। इस वुमन इंटरप्रेन्योर ने न केवल अपने परिवार की किस्मत बदली है बल्कि अपने गांव और आसपास के शहरों की कई औरतों की मदद भी की है। उनके लगातार कोशिश और उपलब्धियों के कारण, राज्य के कृषि विभाग ने उनके गांव अनंतपुर को मशरूम गांव घोषित कर दिया।
7. अनीता गुप्ता
अनीता गुप्ता भोजपुर की वीमेन आर्ट सेंटर की संस्थापक हैं जो ग्रामीण (rural) क्षेत्रों की औरतों को शिक्षा और रोजगार की ट्रेनिंग प्रदान करती है। वह अब तक लगभग 400 कौशल (skills), 25,000 से अधिक औरतों को सीखा चुकी हैं.
उन्होंने बिहार में लगभग 300 वुमन सेल्फ हेल्प ग्रुप भी बनाए, जो सरकार द्वारा आयोजित मेलों और कई इंडियन मेट्रो सिटीज में आभूषणों का प्रोडक्शन और बिक्री करते हैं।
8. सोबिता तमुलि
35 वर्षीय सोबिता तमुली असम के तेलाना गांव की निवासी हैं और सेउजी चलाती हैं, जो एक वुमन सेल्फ हेल्प ग्रुप है जो बायो खाद बनाती और बेचती है और पारंपरिक असमिया जापियां बनाती और बेचती है।
सोबिता ने ब्रोकर्स को अपने कारोबार से बाहर करना सुनिश्चित किया है, और शुरुआत से आईडिया जेनेरशन से लेकर प्रोडक्शन और बिक्री तक सब कुछ खुद किया है ।
इनमें से कई वुमन इंटरप्रेन्योर ने न केवल अपने परिवारों के लिए काम स्थापित करने की दिशा में हैं बल्कि अन्य महिलाओं को रोजगार (Employment) देने में भी कामयाब रही हैं। उनका मुख्य उद्देश्य, विदेशियों को असम में उनके गांव जैसे छोटे बाजारों के लिए राजी करना और ग्रामीण अर्थव्यवस्था (Rural Economy) में सुधार करना है।
9. नवलबेन दलसांगभाई चौधरी
गुजरात की 62 वर्षीय महिला नवलबेन दलसांगभाई चौधरी की कहानी हाल ही में वायरल हुई और कई लोगों के लिए मिसाल साबित हुई। बनासकांठा जिले के नगाना गाँव की रहने वाली नवलबेन ने अपने जिले में एक मिनी-क्रांति का कारण बनने के लिए सभी बैरियर्स को पार किया।
नवलबेन का कहना है कि उनके चार बेटे हैं लेकिन वे उनसे बहुत कम कमाते हैं। वह 80 भैंसों और 45 गायों की डेयरी चलती हैं।
2019 में, उन्होंने 87.95 लाख रुपये का दूध बेचा और इस मामले में बनासकांठा जिले में वह पहली वुमन इंटरप्रेन्योर थी। वह 2020 में 1 करोड़ 10 लाख रुपये का दूध बेचकर भी नंबर वन रही । ‘नवलबेन, जो हर सुबह अपनी गायों का दूध हर व्यक्ति को देती हैं, अब उनकी डेयरी में पंद्रह काम करने वाले लोग हैं।
उनकी कहानी छोटे या रूरल इंडिया की वुमन इंटरप्रेन्योर पर ध्यान आकर्षित करती है जो बहुत मज़बूत असर डाल रही हैं।
भविष्य की ग्रामीण उद्यमी महिलाएं | Future of Women Entrepreneur in Rural India
ये कुछ ही सफल women entrepreneurs हैं, जिनकी कहानियाँ वास्तव में प्रेरणा देती हैं। लिस्ट लंबी हो सकती है, जो rural india में women entrpreneurship को सकारात्मक बदलाव का संकेत देती है। हालाँकि, अभी भी महिलाओं द्वारा, एक लंबा रास्ता तय करना है।
वुमन एंट्रेप्रेन्योर्स भारत में कुल एन्त्रेप्रेंयूर्स का केवल 20 % हिस्सा हैं – जो वास्तव में चिंता का विषय है।सरकार और उद्योग के समर्थन से और बदलते mindset के साथ, ग्रामीण क्षेत्रों की महिलायें, आने वाले दिनों में बिज़नेस की दुनिया में बड़ी प्रगति कर सकती हैं।
अंतिम शब्द | Last Words
हालांकि, ये महिलायें अकेली ऐसी महिलाएं नहीं हैं, जो तेजी से संभावित इंटरप्रेन्योर के रूप में उभरी हैं और महिलाओं की उन्नति की दिशा में काम कर रही हैं।
ग्रामीण भारत (rural India) के दूर-दराज के इलाकों से ऐसी और भी कई वीमेन हैं जो पारंपरिक सांचे को त्याग रही हैं और सामाजिक स्तर पर लिविंग और टिकाऊ आइटम्स के उपयोग की प्रथा को मशहूर बनाने की कोशिश कर रही हैं। इस कदम से कई महत्वपूर्ण सामाजिक और आर्थिक बदलाव हुए हैं, जिससे उन्हें विकास और उल्लेखनीय सफलता के मौक़े प्राप्त हुए हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं को एक शक्ति के रूप में माना जाता है. उनकी प्रतिभा को तलाशने और साबित करने के लिए और अधिक तलाशने की पहल से उन्हें अब सीधे कॉर्पोरेट एक्सपोजर भी मिल रहा है। उन्हें अभी एक लम्बा सफर शुरू करना है, लेकिन हम अब भी कह सकते हैं कि महिलाओं के दरवाजे पर ज़्यादा एक्सेप्टेन्स और मान्यता है।