यह दोहा आपने कई बार अपनी दादी-दादा, नाना-नानी को कहते हुए सुना होगा। क्या आप जानते हैं की यह दोहा किसने कहा है. अगर नहीं, तो हम आपको बताते हैं. यह दोहा संत कबीर दास जी द्वारा कहा गया है. वैसे तो कबीर दास जी किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. लेकिन वे एक ऐसे व्यक्ति थे, जो सभी जाति, धर्म, समुदाय के लोगो को एक ही नजर से देखते थे. वे आडम्बरों, पाखण्ड से बहुत दूर रहते थे. अपने जीवन के अंतिम समय तक वे सभी धर्म के लोगो को साथ रहने का सन्देश देते रहे.
कबीर के नाम का अर्थ है, “महान”. कोई उन्हें भगवान् मानता है तो कोई संत तो कोई गुरु। आइये, कबीर दास जी के जीवन के बारे में विस्तार से चर्चा करते हैं.
अथार्त तुम ब्राह्मण हो और मैं काशी का जुलाहा हूँ. मेरे ज्ञान को पहचानो।
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कबीर दास का जन्म कहाँ हुआ था?| Birth of Sant Kabir Das
कबीरदास जी का जन्म काशी में हुआ था. जिसे आज बनारस और वाराणसी के नाम से भी जाना जाता है. इनका जन्म लहरतारा तालाब के निकट १५ वीं सदी में हुआ था. ऐसा माना जाता है की स्वामी रामानंद जी ने एक विधवा ब्राह्मणी को पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया था. जब कबीर का जन्म १३९८ में हुआ तो समाज के डर से इनकी माता इनको कमल के फूल के ऊपर (लहरतारा तालाब) के निकट छोड़ गईं. इस बालक का पालन-पोषण नीरू और नीमा नामक जुलाहे ने किया। वे दोनों मुसलमान थे.
उस लहरतारा तालाब पर कबीर दास जी का मठ बना हुआ है. जो उनके पूरे जीवन-काल के बारे में बताता है. कबीर का जहाँ पालन-पोषण हुआ , वह जगह वाराणसी में कबीर-चौराहा के नाम से प्रसिद्ध है.
संत कबीर की पत्नी का नाम लोई था. कमाल एवं कमाली नामक पुत्र एवं पुत्री की प्राप्ति हुई.
कबीर दास का भाषा ज्ञान/ Knowledge of Languages
Sant Kabir Das जी के दोहों में इतनी भाषाओँ को देखने को मिलता है की आश्चर्य होता है की अनपढ़ होते हुए भी इतनी सारी भाषाओँ का ज्ञान उन्हें कैसे था?
कई लोग ऐसा मानते हैं क्योंकि उस समय काशी व्यापार का मुख्य केंद्र हुआ करता था; तो उस समय दूर देशों से व्यापारी काशी व्यापार करने आते थे. क्योंकि वे बुनकर थे, तो व्यापार करते वक्त उनके touch में आने से उनको विभिन्न भाषाओं का ज्ञान हुआ होगा|
अक्सर लोगो को हैरानी होती है की Sant Kabir Das जी पढ़े-लिखे नहीं थे, फिर उन्होंने इतने ग्रन्थ कैसे लिखे। यहाँ मैं आप लोगो को बताना चाऊँगी की कबीर दास जी ने यह ग्रन्थ नहीं लिखे। यह ग्रन्थ उनके शिष्यों ने लिखें हैं. जो उस समय उनके भजन और उपदेश सुनने आया करते थे और उनकी वाणी को लिख लिया करते थे.
कबीर दास जी की वाणी में आपको कई भाषाओँ का मेल देखने को मिलता है जैसे खड़ीबोली, राजस्थानी भाषा, अवध भाषा, पंजाबी भाषा आदि. “बीजक” नामक ग्रन्थ में आपको इनकी विभिन्न भाषाओँ का ज्ञान देखने को मिलेगा। इस ग्रन्थ को तीन हिसों में बाटा गया है, साखी, सबद और रमैनी।
संत कबीर के गुरु | Guru of Sant Kabir Das
कबीर दास जी कहते हैं की हिन्दू कहता है की मुझे तो राम प्रिये हैं. तुर्क यानी मुसलमान कहता है की मुझे रहमान प्रिये है. दोनों यानी हिन्दू और मुसलमान आपस में लड़-लड़ कर मरे जा रहे हैं. पर सच कोई नहीं जानना चाहता है.
Sant Kabir Das समाज में हो रही विषमताएं( जैसे ऊंच-नीच, भेद-भाव, धर्म आदि) का विरोध करते हैं. वे कहते हैं,
१५ वीं शताब्दी में कबीर जितने साहसी और निडर थे. समझ नहीं आता की उनके गुरु कौन थे. किसने इन्हे शिक्षा दी. ऐसा सुनने में आता है की कबीर जब रामानंद जी के आश्रम में उनसे मिलने पहुंचे तो उनकी जाति के कारण रामानंद जी ने उन्हें शिक्षा देने से मना कर दिया। पर कबीर कहाँ मानने वाले थे. उन्होंने तय कर लिया था की वे रामानंद जी को अपना गुरु जरूर बनाएंगे। आइये जानते हैं आखिर कबीर ने क्या किया उनको अपना गुरु बनाने के लिए,
कहा जाता है की कबीरदास जी जानते थे की रामानंद जी रोज प्रातः गंगा घाट पर स्नान करने के लिए जाते हैं. जब रामानंद जी के स्नान का समय हुआ, तो वे गंगा घाट की सीढ़ियों पर लेट गए. रामानंद जी जैसे ही सीढ़ियों से उतरने लगे, उनके पैर कबीर जी ऊपर पड़े और यकायक ही उनके मुँह से राम-राम निकला। बस फिर क्या था, कबीर दास जी ने “राम-राम” को अपना शिक्षा मंत्र बना लिया।
कबीर दास जी का अंतिम समय/मृत्यु
कहा जाता है की अंतिम समय में समाज में कुछ लोग ऐसे भी थे, जिन्होंने उन्हें काफी तकलीफें दी. आखिरकार, उन काजी, पांडों और कोतवालों से परेशान होकर कबीर मगहर चले गए.
कुछ लोगो का कहना था, यदि कबीर की मृत्यु मगहर में होती है तो उनको नरक की प्राप्ति होगी। इस पर Sant Kabir Das जी का कहना है की
यहाँ कबीर के कहने का अर्थ है की यदि काशी में मरने से आपको मुक्ति मिलती है तो आपके अच्छे कर्म, प्रभु की आराधना का क्या मतलब।
कबीर से जुडी कुछ अन्य बातें
Sant Kabir Das जी को सिकंदर लोदी के काल का माना जाता है.
कबीर दास जी ने उस समय काफी यात्रायें की जैसे जगन्नाथ पुरी आदि.
Westcott ने Kabir and Kabir Panth की किताब में लिखा है की लोगो ने उनकी शिकायत सिकंदर लोदी से की, वे कबीर को मौत की दें. क्योंकि वे मजहब और धर्म के खिलाफ भड़काते हैं. सिकंदर लोदी ने कबीरदास जी को दरबार में बुलाने का आदेश दिया।
कबीर दास जी जब दरबार में पहुंचे तो सुल्तान ने उस से पूछा की वे अब तक कहाँ थे तो उन्होंने कहा की वे सुई से भी छोटे कारवां को निकलते देख रहे थे. यह सुन सुल्तान हॅसे और बोले की इसका क्या मतलब है तब संत कबीरदास जी ने कहा की ये चन्द्रमा, सूरज, पत्तियां, धुल, छोटी से छोटी वस्तु ईश्वर की है. यह सुनकर सुल्तान बहुत खुश हुए और उनको रिहा कर दिया।
Sant Kabir Das जी के बारे में एक छोटी सी कहानी सुनने में आती है और वह है एक संत और एक गणिका की. कहा जाता है की किसी गणिका के यहाँ रोज शाम को शहर के रहिस लोग उसका नृत्य और गाना सुनने आते थे. उसी समय उस गणिका के घर के बहार के वृक्ष के निचे संत कबीर दास जी रोज भजन किया करते थे. गणिका के नृत्य और गानों की आवाज़ से संत कबीर दास जी अपना मन भगवान् में रमा नहीं पाते थे. उन्हें समझ नहीं आ रहा था की वे क्या करें? तब हिम्मत जुटा कर संत ने एक दिन गणिका से कहा की आप नृत्य और गाना छोड कर प्रभु की आरधना में लग जाये। उसने संत कबीर को धिक्कारा और चली गई. अब कबीर दास जी को समझ नहीं आ रहा था की वे क्या करें? एक दिन शाम को रोज की तरह उस गणिका के घर से नृत्य और गांव की आवाज़ आने लगी. कबीर का मन विचलित होने लगा. तब कबीर ने जोर जोर से अपना भजन गाना शुरू किया। अब हर शाम कबीर यही करते थे. गणिका के घर आने वाले लोग, अब कबीर का भजन सुनने आने लगे. उन लोगो ने गणिका के घर जाना बंद कर दिया।
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